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जब से गुज़रा हूँ इन बातों से / अनिल त्रिपाठी

वह औरत जो सुहागिन
बनी रहने के लिए
करती है लाख जतन
टोना-टोटका से मन्दिर में पूजा तक
अपने पति से कह रही है --
तुम कारगिल में काम आए होते तो
पन्द्रह लाख मिलते
अब मैं तुम्हारा क्या करूँ
जीते जी तुम
मकान नहीं बना सकते ।

कह रहे हैं हमदर्द
साठ साल के पिता की बीमारी के बाद
वे चले गए होते तो
अच्छा होता, उनकी जगह
उनका बेटा लग जाता ।

बैरागी का वह हुनरवान लड़का
जो चारों में अव्वल है
बाप से लड़ रहा है
मैं तुम्हारे यहाँ क्यों पैदा हुआ ।

कालेज में एडमीशन के समय
कैटेगरी पूछे जाने पर
एक लड़की दे रही है जवाब
मैं उस जाति से हूँ
जिसे अब कोई नहीं पूछता ।

मित्रों जब से गुज़रा हूँ इन बातों से
तब से लगता है मेरी कनपटी पर
एक कील गड़ी है
आपको भी गड़े इसके पहले
कोई उपाय सुझाइए
जल्दी कीजिए
दर्द बेतहाशा बढ़ता जा रहा है ।