भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब से तुझ से प्रीत लगायी / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब से तुझ से प्रीत लगायी
तब से दुनिया लगे परायी

निशिदिन चिन्तन मन में होता
प्रेम नदी में लगता गोता
प्रेम स्निग्ध बातें ही सोचूं
तरह-तरह के भाव सँजोता
अगर रात में सोने जाऊँ
नीन्द न आती है हरजाई
जब से तुझ से प्रीत लगायी

केवल तुझसे प्यार करूँगा
मिलने पर मनुहार करूँगा
प्रेमगीत पुनि तत्क्षण रचकर
ग़ज़लों से शृंगार करूँगा
जहाँ-जहाँ पग जाए तेरा
चलूँ संग मैं बन परछाई
जब से तुझ से प्रीत लगायी

तेरी मेरी अनुपम जोड़ी
बनूँ कृष्ण तू भानु किशोरी
नजर गड़ाए देखे दुनिया
जीने देती नहीं निगोड़ी
अपना हित हम खुद ही सोचें
खुद ही अपनी करें भलाई
जबसे तुझसे प्रीत लगायी

आओ मिलकर प्यार करें हम
भावों का इजहार करें हम
विस्मृत कर अब इस जग को ही
चिर शाश्वत अभिसार करें हम
साथ जिएंगे साथ मरेंगे
बने भले जग दुष्ट कसाई
जबसे तुझसे प्रीत लगायी