भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब से तुम आये जीवन में / रूपम झा
Kavita Kosh से
जब से तुम आये जीवन में
मेरी साँस बनी शहनाई
सपनों के बंजर भूमि पर
फिर से घास पनप आए हैं
आशाएँ मन के आँगन में
अभिमानी बन इठलाए हैं
यादों की फुनगी पर फिर से
धूप प्यार की ली अंगड़ाई
पत्थर भी अब इन आँखों को
दर्पण के जैसे दिखते हैं
संदेशा मन का हम दोनों
बिन बोले लिखते-पढ़ते हैं
श्याम तुम्हीं ने इस जीवन को
सुख की वरमाला पहनाई