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जब से तेरा अक्स मुझ में दिखने लगा है / धीरेन्द्र अस्थाना
Kavita Kosh से
अब मुझे आईने से डर लगने लगा है ,
जब से तेरा अक्स मुझ में दिखने लगा है !
अक्सर मेरे ख़याल मुझसे ये सवाल करते हैं ,
इधर तू कुछ बदला-बदला दिखने लगा है !
इक मुद्दत हुई ख़ुद को भूले हुए मुझे,
अब तो ज़र्रे-ज़र्रे में तू ही तू दिखने लगा है !
ग़म-ए- दर्द का इल्म ही न रहा दिल को ,
जबसे तेरे अश्कों में आबे-हयात दिखने लगा है !
कहाँ है ख़ुदा और किसे करूँ सजदा यहाँ,
अबतो मेरे अज़ीज़ में ही ख़ुदा दिखने लगा है !