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जब से दिल में उसे बसाया है / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

जब से दिल में उसे बसाया है
दिल ये अपना नहीं पराया है

कोई फिर हमको याद आया है
एक मातम सा दिल पे छाया है

रौशनी है न कोई साया है
तीरगी ने हमें सताया है

चोट खाने से हम नहीं डरते
एक पत्थर से दिल लगाया है

हमने अब दोस्ती के जज़्बे को
हाले-बद में भी आज़माया है

हम मुसाफ़िर हैं चलते रहते हैं
रास्ता आपने दिखाया है

फिर तेरी याद आ रही है हमें
दर्द ने फिर लहू रुलाया है

क्या न होता हमारे होने से
हमको कुदरत ने क्यों बनाया है।