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जब से बच्चे बड़े हुए हैं / राजपाल सिंह गुलिया
Kavita Kosh से
जब से बच्चे बड़े हुए हैं।
साथ समय के टहल टई का,
बदल गया पैमाना।
भौतिकवादी सोच लिए अब,
आया नया जमाना।
मात-पिता दो रोटी खातिर,
बीच कचहरी खड़े हुए हैं।
जली कटी कह बहू सास का,
नित अवसाद बढ़ाती,
गम खाकर बापू की इच्छा,
आँसू पी सो जाती
नभ छूते वह बेशर्मी में,
ये लज्जा से गड़े हुए हैं।
बेबस होकर खड़ी बुढ़ौती,
यौवन करे किनारा।
तिनके कहाँ डूबते का ये,
बनते आज सहारा,
जनरेशन का गैप बताकर,
ख्यालों के दो धड़े हुए हैं।