भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब हँसी इख़्तियार कर लेंगे / सुमन ढींगरा दुग्गल
Kavita Kosh से
जब हँसी इख़्तियार कर लेंगे
हम खि़ज़ां को बहार कर लेंगे
रक़्स हम नग़मा ए मुहब्बत पर
छेड़ कर दिल को तार कर लेंगे
दोश ए नाज़ुक पे ज़ुल्फ़ बिखरा कर
हम फ़ज़ा खुशगवार कर लेंगे
हर ख़ता उन की दर गुज़र होगी
खुद को जो अश्क़बार कर लेंगे
आखिरी साँस तक मुहब्बत में
हम तेरा इन्तज़ार कर लेंगे
ज़िंदगी चैन से बसर होगी
दिल ज़रा बेक़रार कर लेंगे
देखना एक दिन तुझे राज़ी
हम भी परवरदिगार कर लेंगे
क्या ख़बर थी कि वो 'सुमन खुद को
फिर समंदर के पार कर लेंगे।