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जब हकीकत सामने आयेगी / धीरेन्द्र अस्थाना

जिन्दगी खुद को कब तक आईने से बहलाएगी !
क्या हश्र होगा जब हकीकत सामने आयेगी !

जब-जब हालातों में होगा इम्तिहान तेरे सब्र का ,
राहों की मुश्किलें दास्ताँ-ए-कोशिश बताने आयेंगी !

गुजरती तो जा रही जिन्दगी भटकती राहों से ,
तेरी हसरतें हीं तेरे जज्बे को आजमाने आएँगी !

कब्रगाह तक पहुँचने से पहले तेरे जनाजे के ,
उस रोज़ कयामत सांसों का हिसाब लगाने आयेगी !

मयस्सर न होगा कतरा -ए- रहम तुझे उस रोज़ ,
मंजिल करीब होगी ,मौत तेरा साथ निभाने आयेगी !

जिन्दगी खुद को कब तक आईने से बहलाएगी !
क्या हश्र होगा जब हकीकत सामने आयेगी !