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जब हमार जिनगी झुराए लागे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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जब हमार जिनगी झुराए लागे
तब अपना करुणा के रस से
ओके सराबोर क द
ओके हरियरा द।
जब हमरा जिनगी के मधुरता मरे लागे
तब अपना गीत के अमृत से ओके जिया द।
जब चारू ओर से दुनियादारी के झंझट
हमरा जिनगी के जकड़ लेवे,
जब संसारी कामना के कोलाहल
हमरा जिनगी के कैद कर लेवे,
तब हे नीरवानाथ, हे प्रशांत प्रभु,
तूं शांति दूत बनके
हमरा जीवन में अइह।
जब हमार दीन-हीन मन
सगरो से निराश होके
कोना में सटकल होय;
तब हे उदार प्रभु,
अपने से खोल के
हमार दरवाजा तूं
खूब ठाट बाट से
हमरे घरे अइह।
जब वासना के बवंडर
धूल-धक्कड़ झोभेंक के
हमरा विवेक के आन्हर बना देवे;
तब हे पवित्र प्रभु
अपना ओजस्वी आलोक लेके
हमरा लगे अइह
हमरा के बचइह।।