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जब हाथ उठे अपना बस ये ही दुआ माँगो / रंजना वर्मा

जब हाथ उठे अपना बस ये ही दुआ माँगो
तुम सब की निगाहों में इक ख़्वाब नया माँगो

दिन रात से दुख सुख हैं इस जीस्त को भरमाते
सह जायें इन्हें हँस कर किस्मत की रज़ा माँगो

दिल में हैं जहर ले कर बहने लगीं हवाएँ
जीने के लिये यारों अब शुद्ध हवा माँगो

हम शीश झुका अपना दर पे तो चले आये
रब कहने लगा हम से जो चाहो वही माँगो

मुद्दत से तरसता है दिल उसकी मुहब्बत में
जो दिल को लुभा लेती प्यारी वो सदा माँगो

पाया है उसे जब से चाहत न रही कोई
कुछ भी न कहा जाये जब उसने कहा माँगो

पतझार हुआ मौसम बेरंग हुए गुलशन
अब इन के लिये कोई रंगीन फ़िज़ा माँगो