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जब हाल-ए-दिल हम लिखते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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जब हाल-ए-दिल हम लिखते हैं।
वो हाल-ए-मौसम लिखते हैं।

अब सारे चारागर मुझको,
रोज़ दवा में रम लिखते हैं।

उनके गालों पर मेरे लब,
शोलों पर शबनम लिखते हैं।

रिस रिस कर दिल से निकलेंगी,
सोच, उन्हें हरदम लिखते हैं।

हँसने लगती हैं दीवारें,
बच्चे जब ऊधम लिखते हैं।

दुनिया के घायल माथे पर,
माँ के लब मरहम लिखते हैं।