जब -जब मेरी माई रोतीं हैं / चन्द्र
जब-जब मेरी माई रोती हैं
तब-तब
तब-तब
कल-कल, कल-कल बहती हुई
कपिली नदी माई भी
चुपचाप-चुपचाप रोती हैं
तब-तब, तब-तब
धीमी-धीमी
झीनी-झीनी
धरती माई भी
रोती हैं
तब-तब
तब-तब
शिवफल की शीतल छाँव में
बन्धी हुई
छुटकी खूँटियाँ में
उदास नन्हकी बछिया भी
माँ-माँ-माँ-माँ
बाँ-बाँ-बाँ-बाँ चिघरते हुए
रोने लगती है
तब-तब
तब-तब
झोपड़ी के मुरेड़ पर बैठी हुई प्यारी चिरईयाँ भी
चिहूँ-चिहूँ- चिहूँ-चिहूँ
रोने लगती हैं
और
तब-तब
तब-तब
मैं औरी मोर अनपढ़ी बहिनि भी
माई के लहूलुहान हाथ-पाँव पर उभरे घावों पर
बड़ी ही सनेह के साथ
अपने गर्म और सुन्दर हाथ धर-धर के
झर-झर के
डर-डर के
कँहर कँहर के
आह् उ..उफ़ से
भर-भर के
मर-मर के
मर-मर के
रोने लगते हैं
रोने लगती है
कपिली नदी तट पर की
वंशी-सी
आहतम्यी आवाज़ में बजती
झुरमुट-बांस-झाड़ियाँ भी !