भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जभी पानी बरसता है / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
जभी पानी बरसता है तभी घर की याद आती है
यह नहीं कि वहाँ हमारी प्रिया, बिरहिन, धर्मपत्नी है—
यह नहीं कि वहाँ खुला कुछ है पड़ा जो भीग जाएगा—
बल्कि यह कि वहाँ सभी कमरों-कुठरियों की दिवालों पर उठी छत है ।