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जमने से पिघलने तक / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
कभी - कभी
मेरी जलती हुई पीड़ाएँ
बर्फ़ की तरह
जम जाती हैं
और मुझे
सहन नहीं हो पाती है
उसकी तीव्र शीतलता
उसी असहनीय
पीड़ा के बीच
मेरी आँखें
तप उठती हैं
सूर्य की तरह
और पीड़ाएँ
पिघलने लगती हैं
बर्फ़ की तरह
और इसी
जमकर पिघलने की
क्रिया के बीच में
मैं सब कुछ
सहन कर जाती हूँ।