जमाना खुदा है / नून मीम राशिद
ज़माना ख़ुदा है उसे तुम बुरा मत कहो
मगर तुम नहीं देखते ज़माना फ़क़त रेस्मान-ए-ख़याल
सुबुक-माया नाज़ुक तवील
जुदाई की अर्ज़ां सबील !
वो सुब्हें जो लाखों बरस पेश्तर थीं
वो शामें जो लाखों बरस बाद होंगी
उन्हें तुम नहीं देखते देख सकते नहीं
के मौजूद हैं अब भी मौजूद हैं वो कहीं
मगर ये निगाहों के आगे जो रस्सी तनी है
उसे देख सकते हो और देखते हो
के ये वो अदम है
जिसे हस्त होने में मुद्दत लगेगी
सितारों के लम्हे सितारों के साल !
मेरे सहन में एक कम-सिन बनफ़्शे का पौदा है
तय्यारा कोई कभी उस के सर पर से गुज़रे
तो वो मुस्कुराता है और लहलहाता है
गोया वो तय्यारा उस की मोहब्बत में
अहद-ए-वफ़ा के किसी जब्र-ए-ताक़त-रूबा से ही गुज़रा !
वो ख़ुश-एतिमादी से कहता है
लो देखो कैसे इसी एक रस्सी के दोनों किनारों
से हम तुम बँधें हो !
ये रस्सी न हो तो कहाँ हम में तुम में
हो पैदा ये राह-ए-विसाल ?
मगर हिज्र के इन वसीलों को वो देख सकता नहीं
जो सरासर अज़ल से आबाद तक तने हैं !
जहाँ ये ज़माना हनूज़-ए-ज़माना
फ़क़त इक गिरह है !