जमाने की बात जमाने से / मोहन अम्बर
जमाना है जुंआ खाना,
यहाँ तुम हार मत जाना,
यहाँ जीता वही जीता कि जिसका हाथ है रीता।
वकीलों के घरों से लौटकर बोले मुवक्किल यों,
जरा सोचें ज़रा सोचें कि छोटे इस तरह दिल क्यों,
तभी कुछ सुन समझकर एक दावी इस तरह बोला,
जमाना नाट्य न्यायालय,
जहाँ पर सत्य को भी भय,
मगर जीता वही जीता कि जो भी पढ़ चुका गीता,
यहाँ जीता वही जीता कि जिसका हाथ है रीता।
सफाखाना की शीशम छांह औ! बैठे हुए कुछ लोग,
चर्चा कर रहे थे ये कि कैसे बढ़ रहे हैं रोग,
तभी कुछ सुन समझकर एक रोगी इस तरह बोला,
जमाना वैद्य का वह घर,
जहाँ बस दाम का आदर,
मगर जीता वही जीता कि हँसकर दर्द जो पीता,
यहाँ जीता वही जीता कि जिसका हाथ है रीता।
लुटेरे चोर कातिल जब सजा के बाद में छूटे,
कहा जीवन समस्या ने कि सब आदर्श हैं झूठे,
तभी कुछ सुन समझकर एक दोषी इस तरह बोला,
जमाना क़ैद रावण की,
मुसीबत सत्य के प्रण की,
मगर जीता वही जीता कि जिसकी आत्मा सीता,
यहाँ जीता वही जीता कि जिसका हाथ है रीता।