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जमाने को भले जी भर के चाहे आजमाओ तुम / रंजना वर्मा

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जमाने को भले जी भर के चाहे आजमाओ तुम।
अगर मुमकिन हो' मेरी ज़िन्दगी में लौट आओ तुम॥

वही है मुफ़लिसी यारो वही हैं दर्दो ग़म सारे
जो तुमसे हो सके तो ज़िन्दगी बेहतर बनाओ तुम॥

लिया जब जाम हाथों में छलक उट्ठा है पैमाना
बुझा दे प्यास जो मन की सुराही वह उठाओ तुम॥

सुनहरे ख़्वाब आँखों के हसीं रंगीन गुब्बारे
नहीं ये फूटने पायें हक़ीक़त से मिलाओ तुम॥

बने हमदर्द दुनियाँ के शिकायत क्यों करूँ तुमसे
मगर दुख दूर करने को सभी के पास जाओ तुम॥

भटकती फिर रही है जंगलों में शांति की मैना
उसे मन में बसा लो यूँ कबूतर मत उड़ाओ तुम॥

वफ़ा का वास्ता तुमको अहद को तोड़ मत देना
किया जो खुद से है वादा उसे भी तो निभाओ तुम॥