जमाने को सबदिन हिलाता रहा
कमल पंक में वह िखलाता रहा
न बैरी किसी को कभी मानता
सदा हाथ सबसे मिलाता रहा
किसी की मुसीबत जहाँ दिख गयी
वहाँ पीठ अपनी छिलाता रहा
ग़रीबों का साथी बना रह गया
मरे को हमेशा जिलाता रहा
स्वयं कष्ट सहता भले वह रहा
फटी चादरों को सिलाता रहा
भले रोज़ फ्बाबाय् जहर पी रहा
सभी को वह अमरित पिलाता रहा