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जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा / आलम खुर्शीद

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जमा हुआ है फ़लक<ref>आसमान</ref> पे कितना ग़ुबार मेरा
जो मुझ पे होता नहीं है राज़<ref>धूल, मन में दबाया हुआ क्रोध</ref> आश्कार<ref>स्पष्ट, प्रकट, खुला हुआ</ref> मेरा

तमाम दुनिया सिमट न जाए मिरी हदों में
कि हद से बढ़ने लगा है अब इंतिशार<ref>फैलना, बिखरना</ref> मेरा

धुआँ सा उठता है किस जगह से मैं जानता हूँ
जलाता रहता है मुझको हर पल शरार<ref>चिंगारी</ref> मेरा

बदल रहे हैं सभी सितारे मदार<ref>रास्ता, मार्ग</ref> अपना
मिरे जुनूँ पे टिका है दार-ओ-मदार<ref>निर्भरता</ref> मेरा

किसी के रस्ते पे कैसे नज़रें जमाए रक्खूँ
अभी तो करना मुझे है ख़ुद इंतिज़ार मेरा

तिरी इताअत<ref>हुक्म मानना, आज्ञापालन</ref> क़ुबूल कर लूँ भला मैं कैसे
कि मुझपे चलता नहीं है ख़ुद इख़्तियार<ref>अधिकार, प्रभुत्व</ref> मेरा

बस इक पल में किसी समुन्दर में जा गिरूंगा
अभी सितारों में हो रहा है शुमार<ref>गिनती, हिसाब</ref> मेरा

शब्दार्थ
<references/>