भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जमुनाके तीर बन्सरी बजावे कानो / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जमुनाके तीर बन्सरी बजावे कानो ॥ज०॥ध्रु०॥
बन्सीके नाद थंभ्यो जमुनाको नीर खग मृग।
धेनु मोहि कोकिला अनें किर ॥बं०॥१॥
सुरनर मुनि मोह्या रागसो गंभीर ।
धुन सुन मोहि गोपि भूली आंग चीर ॥बं०॥२॥
मारुत तो अचल भयो धरी रह्यो धीर ।
गौवनका बच्यां मोह्यां पीवत न खीर ॥बं०॥३॥
सूर कहे श्याम जादु कीन्ही हलधरके बीर ।
सबहीको मन मोह्या प्रभु सुख सरीर ॥ब०॥४॥