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जयति देव, जयति देव, जय दयालु देवा / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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जयति देव, जयति देव, जय दयालु देवा।
परम गुरु, परम पूज्य, परम देव, देवा॥
सब बिधि तव चरन-सरन आ‌इ पर्‌यौ दासा।
दीन-हीन-मति-मलीन, तदपि सरन-‌आसा॥
पातक अपार किंतु दया को भिखारी।
दुखित जानि राखु सरन पाप-पुंजहारी॥
अबलौंके सकल दोष छमा करहु स्वामी!
ऐसो करु, जातें पुनि हौं न कुपथगामी॥
पात्र हौं, कुपात्र हौं, भले अनधिकारी।
तदपि हौं तुहारो अब लेहु मोहि उबारी॥
लोग कहत तुहरो सब, मनहु कहत सो‌ई।
करिय सत्य सो‌इ, नाथ! भव-भ्रम सब खो‌ई॥
मोरि ओर जनि निहारि, देखिय निज तनही।
हठ करि मोहि राखिय हरि! संतत तल पनही
कहौं कहा बार-बार जानहु सब भेवा।
जयति, जयति, जय दयालु, जय दयालु देवा॥