जय अंबे! जय जगजननी / जितेंद्र मोहन पंत
जय अंबे! जय जगजननी!! जय भोले शंकर निराकार।
जय नंदा। ज्वाल्पा जय। जय तेरी जग पालनहार।।
वंदना नंदा करता हूं, पर इसमें भी यह स्वार्थ छिपा।
मेरी बहना सर्व सुखी रहे, होना ना उस पर कभी खफा।।
वरदान मुझे दो चिरदर्शी, चिरकाल रहे बहिना मेरी।
खुशी सदा नव युगल रहे, और हो उन पर महिता तेरी।।
जीवन पथ पर चलते—चलते, वे ना तापस में अकुलायें।
मनमोहक शीतल पुरवैया, बहिना के मन को सहलाये।।
प्यारी बहना के जीवन में, मधुर बसंत बहार रहे।
कुसुमित जीवन उपवन में, सुख—अलि की गुंजार रहे।।
मधु चुन—चुन के लाकर अलि, बहिना के जीवन कोष्ठ भरे।
सावन की ज्ञान स्वाति बूंद, बहिना का मन स्पर्श करे।।
बहिना के कोमल तन मन में, चुभे नहीं कांटा गारा।
पथ को पुष्पाच्छादित कर दे, है पुष्प तुम्हें बहुत प्यारा।।
बलिष्ठ भुजा जिस दिशा में मेरी, उस दिशा में शीतल पवन बहे।
छू छूकर भाई के मन को, उनसे यह शुभ संदेश कहे।।
हे देवों के देव शिव, दो मुझको आज ये अटल वचन।
बहु देख लिय, अब ना देखूं, मां—तात, बहिन के अश्रु नयन।।