भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जय छूमंतर जय माँ काली / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा वचन न जाए खाली
जय छूमंतर
जय माँ काली

भूखों की बस्ती के आगे
शाह खड़े हैं हाथ पसारे
गुंबद में चल रहे तमाशे
दिखा रहे नट दिन में तारे

गली-गली में खड़े सवाली
                 जय छूमंतर - जय माँ काली

घर-घर में जा चिड़िया कानी
सुना रही है बात पुरानी
आई थी धरती पर नदिया
ख़ूनी हुआ नदी का पानी

मन्दिर में कल चली भुजाली
                   जय छूमंतर - जय माँ काली

बस्ती के उस ओर सिरे पर
एक किला है बड़ा पुराना
जादू का है महल वहीं पर
जो भी उसमें गया - समाना

और खो गई उसकी ताली
                 जय छूमंतर - जय माँ काली

एक कुआँ है - पानी खारी
होती जलसे की तैयारी
बूढ़े देव करें क्या, भाई
सुना रहे हैं चतुर पुजारी

वही प्रार्थना पुरखोंवाली
                  जय छूमंतर - जय माँ काली