जय जय हे खुरपी जय कोदारि / कालीकान्त झा ‘बूच’
जय जय हे खुरपी जय कोदारि
जय खेतक नर खरिहान नारि
जय कर्षणरत हलधर कुमार
जय वर्षणरत श्रमस्वेद धार
जय वाहक बोझक बोझ भार
जय ग्राहक त्यागक तपक सार
जय हेठक जेठक पनपिआई
ल' चललि हारि तजि सुखक द्वारि
जय जय हे खुरपी जय कोदारि...
भ' गेल खेतभरि हरक चाश
बुनि बीज करह जौं फलक आश
लुटिहारा खग केँ उरियाबह
चट चरिगोरबा पर चढि धाबह!
जल्दी-जल्दी चौकी चलबह
ऊभर केँ खाभर मे पसारि
जय जय हे खुरपी जय कोदारि...
आनह सगरो समता समतल
मानह हे पशुपति भ' अविकल
गाबह ल' भूत परेतक दल
अजमाबह आबो अप्पन बल
चलि रहल दानवक दमन चक्र
तोँहू चलबह पैना सुतारि
जय जय हे खुरपी जय कोदारि...
भरिते रहलह कलमक काया
मरिते रहलह ल' ल' माया
ओ कहियो तोहर ने भेलह
लेतह सभ किछु जे ल' सकतह
मुँह पर चुम्मन चुचुकारि रहलछह
देखह देखह पीठ मारि
जय जय हे खुरपी जय कोदारि...