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जय बाङला / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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आदमीयत के छाती पर दाल दरै छै
भूखा-निहत्था केॅ पैमाल करै छै
एक इन्सान, याहिया खान, हैवान बनी केॅ
आदमी के लहुवोॅ सें हरा-भरा धरती लाल करै छै
आदमी खाय छै आदमखोर
जरियो नी भीजै छै आँखी के कोर
आपनोॅ माय केॅ, आपनोॅ भाय केॅ
जित्ते जराय छै, हाय रे अघोर
आपन्है उपजाय छै आपनोॅ काल
अपना लेॅ बूनै छै आपन्है जाल
संकल्पी पाठा रं पागुर करै छै
काता पिजाबै छै देश बंगाल।
एक दिन ऐतै ऊ घड़ी-मुहुर्त्त
जहिया समैतै ऊ माँटी में धूर्त्त
नरता केॅ मिलतै राहत के दान
मिलते बाङला केॅ वांछित जयगान।