भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जय मातृभूमि / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
Kavita Kosh से
जय जय जननी जन्मभूमि जन-मन विहारिणी।
य-श-पराग त्रिभुवन प्रसारिणी सौख्य कारिणी।।
मा-नवता कचर पुण्य पोषिका कल्याणी जय।
तृण समान त्रैलोक्य-विभव तव-सन्मुख निश्चय।।
भूरि भाग्य-भाजन जन हैं हम जगतीतल में।
मिला सुखद आवास अंक नव अभय अमल में।
भाल सुभग पर हिमगिरि क्रीट समान सुशोभित।
रहते सुर लालायित व पद्रज पावन-हित।।
तम अविवेक हरो मानस का देवि! दया कर।
मां वर दो नित करें तुम्हारी कीर्ति उजागर।।