भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जय हो जय हो सबकी जय हो / अरुण कमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(पटना में पुलिस ने बाल-मेला लगाया)

आओ बच्चो बाल-दिवस के शुभ अवसर पर
पुलिस तुम्हें दिखलाने आई खेल-तमाशे,
देखो बच्चो--
देखो, निर्भय नि:शंक, पुलिस के करतब देखो,
कितनी प्यारी पुलिस तुम्हारी, देखो बच्चो

ये देखो जासूसी कुत्ते, दौड़ रहे हैं किस फुर्ती से,
गज़ब चाल है, आँखें कितनी चमक रही हैं,
हाँफ रहे हैं जीभ निकाले, सूंघ रहे हैं हरी दूब को--
हरी दूब पर भी शक इनको देखो बच्चो

दौड़े-उमड़े चले आ रहे घोड़ों के दल के दल
काले भूरे चित्तकबरे, साँवले सजे सजीले
हवा सोख लेंगे नथुने से सारी, ऎसे घोड़े
भीड़ हज़ारों की हो फिर भी, एक दौड़ मैं
मिट्टी के ढेले-सा फोड़ें देखो बच्चो

वो देखो बन्दूक चमकती भरी धूप में,
यह है वो बन्दूक कि जिसने एक रोज़ में सौ को भूना,
बेनट भी क्या पीछे उससे--
उसने भी कितनी देहों को किया है सूना
बढ़ा मान भारतमाता का दूना-दूना, गर्व करो भारत-भूमि पर

येल्लो आ गए वर्दी पहने टोपा पहने भले सिपाही,
एक ताल में क़दम मिलाते क़दम मिलाते क़दम मिलाते,
बजे ज़ोर से ताली बच्चो बजे ज़ोर से और ज़ोर से,
भारत माँ के जन-गण के बच्चों के रक्षक भले सिपाही

माँ-बहनों की इज़्जत लूटी जिन लोगों ने
उन की जय हो
ख़ून बहाया मासूमों का जिन लोगों ने
उन की जय हो
दाँत गड़ाने को जो व्याकुल उन कुत्तों की
जय हो जय हो
पैसा फेंको पैसा, जल्दी-जल्दी फेंको पैसा
फेंको