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जरा-सी बात पे इतने वबाल करता है / सिया सचदेव

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जरा-सी बात पे इतने वबाल करता है
वो इस कदर मेरा जीना मुहाल करता हैं
 
हर एक बात पे सौ सौ सवाल करता है
नए ज़माने का बच्चा कमाल करता है
 
वो बाज़ आएगा ए दिल न अपनी आदत से
तू किस उम्मीद पे शौक़ -ए -विसाल करता है
 
पशेमां खुद भी है वो अपनी बेवफाई पे
वो जुल्म करता है और फिर मलाल करता है
   
पसीना बनके जो उभरा है मेरे माथे पर
यही लहू मेरी रोजी हलाल करता है
 
हमेशा उसने नवाज़ा हैं दर्द-ओ-ग़म से मुझे
वो मेरे शौक का कितना खयाल करता हैं
 
जो थाम लेता है खुद बढ़के हाथ मुफलिस के
खजाने उसके खुदा मालामाल करता है
 
सिया मैं क्या कहू अब और उसके बारे में
वो नेकियां भी बड़ी बेमिसाल करता है