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जरा हयात को सांचे में ढाल अच्छे से / गिरधारी सिंह गहलोत
Kavita Kosh से
जरा हयात को सांचे में ढाल अच्छे से।
तभी ये ज़िंदगी होगी निहाल अच्छे से।
समझ ज़माने की तिरछी ये चाल अच्छे से।
हैं लोग दुनिया में करते हलाल अच्छे से।
सियासतों के सदर आज चुप है क्यों बैठे
करो न कुछ तो मिटे हर बवाल अच्छे से।
यही चलन तो हमेशा रहा है दुनिया का
जो बोलता है बिके उसका माल अच्छे से।
सिमट के रह गई तादाद ऐसे लोगों की
सजाते रोज जो थाली में दाल अच्छे से।
ग़मों का बोझ अकेले उठा रहे हो क्यों
बयाँ करो न किसी से ये हाल अच्छे से।
अवाम आज है महफ़ूज़ फौज के दम पर
निभाते फ़र्ज़ वो माई के लाल अच्छे से।
सुकून दिल को मिलेगा ख़ुशी में ग़म में भी
नज़र से अश्क़ अगर दो निकाल अच्छे से।
मिली अगर जो मुझे दाद इस कदर सबकी
करूँ 'तुरंत' सुख़न में धमाल अच्छे से।