जरुरी है यह समझना
कि उसका अपना
एक स्वतंत्र अस्तित्व है
देह से लेकर मन तक पर
सिर्फ उसका अधिकार है
समानता और बराबरी का
ढोंग छोड़कर
जरुरी है यह समझना
कि उसके हिस्से के
अच्छे या बुरे
तमाम फैसलें उसके अपने है।
उसके लिए
एक उन्मुक्त और तनावरहित
समाज देना
रोटी कपड़ा और मकां जितना ही जरुरी है
और इसके साथ ही
जरुरी है यह समझना
कि उसके होने से
हमारा होना है
पर फिर भी हम
उसके नही हो सके है।