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जरूरत पर यकीनन लेखनी अंगार लिखती है / शेष धर तिवारी
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जरूरत पर यकीनन लेखनी अंगार लिखती है
नहीं तो ये मुहब्बत के मधुर अशआर लिखती है
जो अपनी जान देकर भी हमें महफूज़ रखते हैं
ये उन जाबांज वीरों के लिए आभार लिखती है
मुहब्बत करने वालों से है इसका कुछ अलग रिश्ता
कभी इकरार लिखती है कभी इनकार लिखती है
अगर हो जाए कोई अपना ही इस देश का दुश्मन
बिना संकोच के ये उस को भी गद्दार लिखती है
लड़ाते हैं हमें मजहब के ठेकेदार अपनों से,
दिलों को जोड़ने के वास्ते ये प्यार लिखती है
ये मेरी लेखनी ही है मैं जिसके साथ जीता हूँ
यही तो है जो मेरे मन के सब उद्गार लिखती है