भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जर्मन शोकगीत / जेम्स फ़ेंटन
Kavita Kosh से
|
बात ये नहीं है कि उन्होंने क्या बनाया
उन्होंने जो ध्वस्त किया ये उसकी बात है
ये घर नहीं हैं
ये घरों के बीच की दूरियां हैं
बात उन घरों की? नहीं है जो अस्तित्व में हैं
ये वो ठीये हैं जिनके मिटा दिए गए नामोनिशान
ये तुम्हारी स्मृतियां नहीं हैं
परेशान कर डालती हैं और आती हैं बार-बार लौटकर
ये वह भी नहीं जो तुमने लिख डाला
यह है तो वह है
जिसे तुमको भूल जाना चाहिए हर हाल में
ज़िदगीभर के लिए स्मृतिपटल से
अगर साधारण-से विचारों के साथ
आगे को बढ़ सकते हो
तो यकीनन कभी अपने को
अकेला महसूस नहीं करोगे
देखो कल तक तो ये फ़र्नीचर ही
तुम्हारी ओर देखते थे
आज तुम पाते हो बैठे हुए
खुद को जीवन की खिड़की में।