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जलती बारूद बनो अब बुर्जों पर छाओ रे / ऋषभ देव शर्मा
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जलती बारूद बनो अब बुर्जों पर छाओ रे
हर बुलडोज़र के आगे पर्वत बन जाओ रे
इन खेतों में आँगन को यूँ कब तक बाँटोगे?
मंदिर में सिज़्दे, मस्जिद में प्रतिमा लाओ रे
ये टूटे दिल के नग्मे गाने से क्या होगा?
ज़ालिम मीनारें टूटें कुछ ऐसा गाओ रे
'गा' गोली, 'बा' बंदूकें, 'खा' से खून-पसीना
'रा' रोटी, 'आ' आग और 'ला' लहू पढ़ाओ रे
अब और न तश्तरियों में यह ज़िन्दा मांस सजे
रोटी के हक़ की ख़ातिर तलवार उठाओ रे