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जलते रहो / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जलते रहो, जलते रहो !
चाहे पवन धीरे चले,
चाहे पवन जल्दी चले,
आँधी चले, झंझा मिलें,
तूफ़ान के धक्के मिलें,
तिल भर जगह से बिन हिले
जलते रहो, जलते रहो !
या शीत हो, कुहरा पड़े,
गरमी पड़े, लूएँ चलें,
बरसात की बौछार हो,
ओले, बरफ़ ढक लें तुम्हें,
आकाश से पर बिन मिटे
जलते रहो, जलते रहो !
चाहे प्रलय के राग में
जीवन-मरण का गान हो,
दुनिया हिले, धरती फटे
सागर प्रबलतम साँस ले,
पिघले बिना सब देखकर
जलते रहो, जलते रहो !