भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जलते शहर का दर्द / शहंशाह आलम
Kavita Kosh से
ज़िक्र छिड़ा जब दौरे-अजब का
झील में रोया है चांद शब का
सीना ताने कब से खड़ा है
हौसला पर्वत का है ग़ज़ब का
जलते शहर का दर्द न जाने
सूरज निकला बस मतलब का
मांगा लहू जब शे’रो-सुख़न ने
ग़म में ‘शहंशाह’ डूबा कब का।