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जलरुद्ध दूब / त्रिलोचन
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मौन के सागर में
गहरे गहरे
निशिवासर डूब रहा हूँ
जीवन की
जो उपाधियाँ हैं
उनसे मन ही मन ऊब रहा हूँ
हो गया ख़ाना ख़राब कहीं
तो कहीं
कुछ में कुछ ख़ूब रहा हूँ
बाढ़ में जो
कहीं न जा सकी
जलरुद्ध रही वही दूब रहा हूँ ।