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जलावतनी / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
उन्होंने दबा दिए सारे बटन
जल गए सारे बल्ब
अनगिनत रँगों के अपार उजाले में
जगमगा उठा वह महा-शहर
’कितना अन्धेरा है यहाँ ?’
मैंने धीरे से कहा
किसी रोशनी से सराबोर सड़क पर चलता हुआ
शहर से निकाला गया मुझे
इतना बड़ा झूठ बोलने के लिए