भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जला के तीलियाँ अब दोस्त मिलने आया है / ज्ञान प्रकाश विवेक
Kavita Kosh से
जला के तीलियाँ अब दोस्त मिलने आया है
कि मैने आज इक क़ाग़ज़ का घर बनाया है
पता नहीं मुझे दावत में क्या खिलाए वो
जो अपने वास्ते पत्थर उबाल लाया है
भटकने के लिए दुनिया में रहनुमाओं ने
ज़मीं पे एक फ़िलिस्तीन भी बनाया है
पता लगाओ कि इन्सान है या वो रोबोट
जो तितलियों की चटाई बनाने आया है
बड़ों ने यत्न किए और थक गये लेकिन
पतंग तार से बच्चा उतार लाया है
खड़ा हुआ था वहीं आँसुओं के जलसे में
कि जिसने अपना लतीफ़ों से घर बनाया है