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जला दो उर मेरे विरहानल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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जला दो उर मेरे विरहानल।
प्रियतम! बिना तुम्हारे, बीते दु:खमय युग-सम मेरा पल-पल॥
भोगासक्ति-कामना-ममता जग-ज्वालाएँ सब जायें जल।
मिट जाये सब दुःखयोनि आद्यन्तवन्त भोगोंका अरि-दल॥
जाग उठे दैवी गुण, हो वैराग्य-राग-रंजित अन्तस्तल।
मिलन तुम्हारा हो, मिल जाये मानव-जीवनका यथार्थ फल॥