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जल्बाज जलद / ज्ञानेन्द्रपति

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जबसे बोतलबंद हुआ है पानी
हथेली भूलने लगी है चुल्लू बांधना

अनारक्षित डिब्बों के रेलयात्रियों के लिए भी बोतलबंद है पानी
आरक्षित डिब्बों के रेलयात्रियों द्वारा पीकर त्यागी गई
ब्रांडधारी प्लास्टिक बोतलों में-
जिन्हें उठा लेते हैं वे
काले कोट, खाकी वर्दी को मुस्कराता सलाम ठोंक, डिब्बे में घुस
वे-स्टेशनजीवी
-और भर लेते हैं उनमें आकण्ठ पानी
रेलवे के नलकों से-ऐसे जो बहते ही रहते धारासार
लेकिन होते प्राय: खुश्क ट्रेन आने के थोड़ा पहले ही-
ऐसी ही है साँठ-गाँठ रेलवे कर्मचारियों की बोतलबंद
पानी के विक्रेताओं से-
इनसे नहीं, साँठ-गाँठ उनसे जो
ठंडे बक्से में
रखे हुए हैं ब्रांडधारी पारदर्शी प्लास्टिक बोतलें पानी की
जिनकी लम्बूतरी गरदन गहने को
आपके पास दस अंगुलियों का नहीं
दस रुपयों का होना जरुरी है

'मन में पानी के अनेक संस्मरण हैं'-कहा था एक कवि ने
खिलंदड़ी बौछार ममतालु जलधार

लहर तरंग ज्वार
पानी के सारे संस्मरण मथने लगते हैं जब मन को
निर्जल निदाघ में
जीवन-यात्रा-बीच रेलयात्रा में
उमसते अनारक्षित डिब्बों के बाहर-
प्लेटफार्म पर ट्रेन के लगते ही-
खुली खिड़कियों के आगे
मंडराते हैं जलद मेघों की तरह करतल लिए पानी
जो स्टेशनजीवी
उनमें है दो बैसाखियों पर फुदकता
किसुना भी
औचक एक ट्रेन ने झटक ली जिसकी एक टांग
लेकिन ये ट्रेनें हैं जो
जिलाए रखती हैं उसको
अनारक्षित डिब्बों में कसे यात्रियों को
सस्ता पानी पिलाने के लिए

देखो, इसी प्लेटफार्म पर आ रही है ट्रेन
और ढीली-सी गंजी के नीचे, अपनी देह के मध्य भाग में
चौतरफ
जिसे सुलझा रहा था किसुना मनोयोग को बीड़ीयोग दे देर से,
शायद उसी सुतली के संजाल से
बांध, फांस, लटका ली हैं उसने पानी-भरी
पारदर्शी प्लास्टिक बोतलें-
पतलून पहना बादल वह-अब-मायकोवस्की का
बस केवल एक पांयचा उसकी पतलून का झूलता रहता हवा में
बैसाखियों पर फुदकता जा रहा वह
कालिदास-वर्णित महान पुष्करावर्तक
मेघों के वंशज की गरिमा से भरा-पूरा
प्लेटफार्म के उस छोर, जहाँ
ट्रेन के अनारक्षित डिब्बे रुकते हैं कसे बसे धाह और प्यास से भरे