भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जल्लाद / रशीद हुसैन
Kavita Kosh से
मुझे एक रस्सा दो
एक हथौड़ा
और एक लोहे का सरिया
ताकि मैं बना सकूँ फाँसी का तख़्ता
मेरे लोगों में
शेष है अभी एक समूह
उदास चेहरे लिए घूमता है जो
लज्जित करता है हमें
आओ ! उनकी गरदनें कस दें
हम अपने बीच
कैसे रख सकते हैं उन्हें
जो चाटते हैं हथेली
हर उस किसी की
जिससे भी वे मिलते हैं
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय