भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जल्वागर जब सों वो जमाल हुआ / वली दक्कनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जल्‍वागर जब सों वो जमाल हुआ
नूर-ए-ख़ुर्शीद पायमाल हुआ

नश्‍शए-सब्‍ज़ए-ख़त-ए-ख़ूबाँ
वाली-ए-आलम-ए-ख़याल हुआ

याद कर तुझ भवाँ की बैत-ए-बुलंद
माह-ए-नो साहिब-ए-कमाल हुआ

देख कर तुझ निगाह की शोख़ी
होश-ए-आशिक़ रम-ए-ग़ज़ाल हुआ

हुस्‍न उस दिलरुबा का मुद्दत सों
अक्‍स-ए-आईना-ए-ख्‍य़ाल हुआ

वस्‍फ़ में तुझ भवाँ के हर मिसरा
सानी-ए-मिसरए-हलाल हुआ

जिनने देखा है तुझ निगाह का तेग़
फिर के जीना उसे मुहाल हुआ

अज़ल मजनूँ के बाद मुझकूँ 'वली'
सूबा-ए-आशिक़ी बहाल हुआ