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जल-महिमा / जतरा चारू धाम / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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प्रथम सृष्टि जल, जीवन थिक जल, जलद-जलद जल योग
सजल सजीव जगत, पुनि निर्जल नहि जीवन उपभोग।।69।।

मनु पहिनहु जल प्लावन बिच रचि मानव ज्ञान निसर्ग
मीन पीन बनि प्रलय-जलधिसँ कयलनि श्रुति अनुसर्ग।।70।।

कमठ पीठ, मंदर मंथन, रजु शेष्ज्ञ सुरासुर संग
विष-पीयूष रमा-रंभा, गज तुरग, रतन कत गंग।।71।।

रमा-रमण अपनहु करइत छथि, शयन जतय एकांत
शिव रामेश्वर उतरि शिखर कैलास, बसल तट प्रांत।।72।।

भारत त्रिवृत सिधु जल उत्तर दिसहु द्रवित हिमवान
सजल मूर्ति, सर्वोपरि वर्षा शिव जलधारा स्नान।।73।।

स्वयं हिन्दु नामहुमे सिन्धुक सरस परस अभिधान
अधुनातन युगहुक शिक्षित जन स्नातक बनथि प्रमान।।74।।

प्रथम अतिथि पूजन मे जलहिक अर्हणाक व्यवहार
शासन-आसन राज्य ग्रहण शुचि अभिषेकेक प्रचार।।75।।

पितरहु हित तर्पण शब्दहि जल अंजलिहिक विधि बोध
धन-रस उर्वी उर्वर, जल-बल हरित क्रान्ति अनुरोध।।76।।

शिव सद्यः स्नातक छथि सिर धय, गंगाजल अविराम
शयन सागरे, नार नीर-अयनेँ नारायण नाम।।77।।

लय कर सहज कमंडलु ब्रह्मा कमलासन विख्यात
इन्द्र वृष्टि जल देव वरुण पूर्वापर दिक्पति ज्ञात।।78।।

छोड़ि ‘सहस्र’ स्नानमाचरेत्’ नीति अपन अपनाय
स्नातक सार्थक बनबे चिन्मय भारत तीर्थ नहाय।।79।।