भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जल-समाधि / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
जल समाधि
सीता की व्यथा-कथाएँ सुन
वाल्मीकि, रच देते हैं रामकथा
‘रामायण’
पर सखी!
न मैंने कथा कही
न तुमने जानकीकथा रची
फिर भी
भयभीत, कातर, भीरु
अपराधियों का डर
छद्मबल बन, उमड़ता रहा
और
चक्रवर्ती होने के लिए
दौड़ा दिए अश्व।
लव-कुश
जन्मे नहीं अभी
गर्भ में है
और भूमि भी फटकर
देती नहीं आश्रय, समोती नहीं;
आओ
पानी में ही समा जाएँ हम।