Last modified on 23 नवम्बर 2010, at 09:47

जल अब तो आजा / शरद चन्द्र गौड़

कुंभी के अब नहीं
होते दर्शन
तालाब उदास खग-विहीन

शंख, कमल, तरंग
अब दिखते नाही
टोंटी भी है जल-विहीन

शहर उठा है आस लगाए
गुण्डी, धड़ा, मटका लिए
लड़ते रहते
बात-बात पर
करते तू..तू, मैं..मैं
टोंटी उनको खूब निहारती
मैं अब तक हूँ नीर विहीन

मछली ने अब चलना सीख लिया
जीना सीख लिया
जल-विहीन
अब तो आजा अब तो आ जा
टोंटी भी अब आस लगाती
पानी आजा पानी आजा