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जल के लिए / नंदकिशोर आचार्य
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जितना भी जला दे
सूरज
सुखा दे पवन
सूखी-फटी पपड़ियों में
झलक आता है
धरती का प्यार
जल के लिए—
गहरे कहीं जज़्ब है जो ।
—
29 मार्च, 2009