जल जीवन हरियाली / चंदन द्विवेदी
धरती को सुन्दर कहना आसान रहा है
धरती को सुन्दर रखना आसान कहाँ है
जिन पेड़ों से जीना सीखा जग के पूर्वज जेठों ने
उन पेड़ों को काट दिया है नालायक बन बेटों ने
धरती माँ के चेहरे पर हर दर्द बयां है
धरती को सुंदर रखना आसान कहाँ है
झील सी आंखें लिखते हो पर झील कभी क्या देखा है
कलकल कर बहती नदियां ही जग की जीवन रेखा है
नदियों की शीतलता से ही जग संवरा है
धरती को सुंदर रखना आसान कहाँ है
माना कि घर अनिवार्य है रहने को सुस्ताने को
पर क्या आंगन है नसीब अब कहीं कबूतरखाने को
आंगन की तुलसी पूजी जाती है कि गुणकारी है
हर आंगन में तुलसी हो ये अपनी जिम्मेदारी है
आंगन की तुलसी से परि आवरण रहा है
आंगन की तुलसी बनना आसान कहाँ है
क्या पिज़्ज़ा बर्गर खाकर जी लेना अपना जीवन है
नहीं नहीं, जल है तृप्ति जीवन है जबकि 'जी वन' है
अजी बताओ वन विहार को कहां रहा है
धरती को सुंदर रखना आसान कहाँ है
कटु सत्य है इस जग का जो आया है सो जाएगा
नाम उसी का अमर रहेगा जो सौ वृक्ष लगाएगा
यम भी पहला प्रश्न करेगा अजी धरा से आये हो
नीम, आंवला ,पीपल, तुलसी कितने वृक्ष लगाए हो
स्वर्ग मिलेगा जिसने भू पर वृक्ष लगाया
नरक पायेगा जिसने रेगिस्तान बनाया
वृक्ष लगाने वाला ही सुख भोगेगा
वृक्ष काटने वाला तो बस रो देगा
स्वर्ग नरक का कारण भी यह वृक्ष रहा है
धरती को सुंदर रखना आसान कहाँ है
धरती पर सुन्दर रहना आसान कहाँ है