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जल पर लिखेंगें / सीमा अग्रवाल
Kavita Kosh से
चलो बैठें पैड़ियों पर
झील की
चुपचाप
कंकरों की कलम से
जल पर लिखेंगें
हम लिखें तो समझना तुम
और फिर
तुम तुम्हारी बात लिखना
हम पढेंगे
नाचते जल वर्तुलों में
बांचते हैं
प्रीत के पदचाप
अधर पर रख स्मित ज़रा-सी
सुने चल कर
नील कमलों से गुलाबी
शाम ने
क्या कहा, कैसे कहा सब
गुने चल कर
रंग में रंगते रंगों में
घोल आयें
आज अपना आप
आज मन की तितलियाँ
निर्बंध कर दें
वार चंचल हवाओं पर
नियम सब
साँस की शहनाइयों को
मुक्त स्वर दें
झील में झुक छपछपाती
डालियों की
सुने नटखट थाप