जल भरे झूमैं मानौं भूमैं परसत आप,
दसँ दिसान घूमैं दामिनी लये लये।
धूर धार धूसरित धूम से धुँधारे कारे,
घोर धुरवान धाकैं छवि सों छये छये॥
'श्रीपति सुकवि कहैं घरी घरी घहरात,
तावत अतन तन ताप सों तये तये।
लाल बिन कैसे लाज चादर रहैगी आज,
कादर रजत मोहिं बादर नए-नए॥