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जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुसवाई / शहजाद अहमद
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जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुसवाई
अब खाक उड़ाने को बैठे हैं तमाशाई
अब दिल को किसी करवट आराम नहीं मिलता
एक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई
इक चोर छुपा बैठा है सीने की गुफा में
इस खौफ से इक उम्र हमें नींद न आई